आषाढ़ पूर्णिमा हिंदू कैलेंडर के अनुसार एक महत्वपूर्ण दिन है. यह दिन गुरु पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है, जिस दिन लोग अपने गुरुओं का सम्मान करते हैं. इस दिन को बुद्ध पूर्णिमा भी कहते हैं क्योंकि भगवान बुद्ध ने इसी दिन ज्ञान प्राप्त किया था. इस दिन का महत्व आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दोनों रूपों में बहुत बड़ा है. लोग इस दिन पूजा-पाठ, दान और सत्संग करते हैं. वहीं पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने का भी विशेष महत्व है.
लोकल 18 के साथ बातचीत के दौरान उत्तराखंड के ऋषिकेश में स्थित श्री सच्चा अखिलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी शुभम तिवारी ने बताया कि सनातन धर्म में पूर्णिमा का दिन बेहद ही शुभ माना जाता है. आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को आषाढ़ पूर्णिमा मनाई जाती है. इस साल यह पूर्णिमा 21 जुलाई को मनाई जाएगी. ये दिन श्री हरि विष्णु, देवी लक्ष्मी, चंद्र देव और शिव पूजन के लिए समर्पित है. ऐसी मान्यता है कि यह समय स्नान-दान और पूजा-पाठ के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है. इसके साथ हे इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने का भी विशेष महत्व है.
पूर्णिमा के दिन अर्घ्य देने का महत्व
पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने की यह परंपरा सदियों पुरानी है और विशेष रूप से हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण मानी जाती है. चंद्रमा को अर्घ्य देने से मन की शांति और मानसिक संतुलन प्राप्त होता है. लोग मानते हैं कि इससे सुख, शांति और समृद्धि आती है. चंद्रमा को जल अर्पित करने से जल तत्व का संतुलन भी बना रहता है. यह पूजा मन की शुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने में सहायक मानी जाती है. पूर्णिमा के दिन इस विधि को करने से ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में खुशहाली आती है.
अर्घ्य देने की सही विधि
पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने की विधि सरल और पवित्र होती है. सबसे पहले, साफ जल को एक तांबे के लोटे में भरें. इसमें कुछ चावल के दाने और सफेद फूल डालें. सूर्यास्त के बाद, खुले आकाश के नीचे जाएं, जहां से चंद्रमा स्पष्ट रूप से दिखाई दे, चंद्रमा को देखते हुए भगवान का ध्यान करें. फिर दोनों हाथों से लोटा पकड़कर धीरे-धीरे जल अर्पित करें, ताकि जल की धारा चंद्रमा की ओर बहती दिखाई दे. इस दौरान अपनी मनोकामनाओं को मन ही मन दोहराएं. अर्घ्य देने के बाद, हाथ जोड़कर प्रार्थना करें और आशीर्वाद प्राप्त करें. वहीं चंद्र देव को अर्घ्य देते समय भूलकर भी जूता, चप्पल न पहनें. पवित्रता का खास ख्याल रखें. सही दिशा में मुख करके अर्घ्य दें. साथ ही ब्रम्हचर्य का पालन अवश्य करें.