सनातन पंचांग के अनुसार हर वर्ष आषाढ़ महीने में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि तक गुप्त नवरात्रि मनाई जाती है। इस प्रकार साल 2024 में 6 जुलाई से आषाढ़ गुप्त नवरात्रि है। आज गुप्त नवरात्रि का पहला दिन है। इस दिन जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की प्रथम स्वरूपा मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक मां शैलपुत्री के निमित्त व्रत-उपवास भी करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि मां शैलपुत्री की विधि-पूर्वक पूजा करने से व्रती को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। आइए, मां शैलपुत्री की उत्पत्ति की कथा जानते हैं-
मां शैलपुत्री की उत्पत्ति
सनातन शास्त्रों में निहित है कि कालांतर में प्रजापति दक्ष ने जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की कठिन तपस्या की। प्रजापति दक्ष की कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर मां दुर्गा प्रकट होकर बोली- मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं। मांगों, तुम्हें क्या चाहिए। उस समय प्रजापति दक्ष ने मां को पुत्री रूप में प्राप्त करने का वरदान मांगा। मां दुर्गा यह कहकर अंतर्ध्यान हो गई कि जल्द सती रूप में तुम्हारे घर जन्म लूंगी। कालांतर में प्रजापति दक्ष के घर मां सती की जन्म हुआ। हालांकि, मानवीय रूप में मां सब कुछ भूल गई। एक रात स्वप्न में भगवान शिव आए और उन्हें स्मरण दिलाया।
अगले दिन से मां सती भगवान शिव जी की पूजा-उपासना करने लगी। इसी समय प्रजापति दक्ष उनके विवाह हेतु वर ढूंढने लगे, लेकिन मां सती शिव जी को अपना पति मान चुकी थीं। अतः उन्होंने पिता के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उस समय मां सती की शादी भगवान शिव से हुई। हालांकि, उनके पिता प्रसन्न नहीं थे। अतः भगवान शिव और प्रजापति दक्ष के मध्य वैचारिक द्व्न्द बना रहा।
एक बार प्रजापति दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन किया। इसमें मां सती को नहीं बुलाया गया। यह जान मां सती व्याकुल हो उठीं। मां सती जाने की जिद करने लगी। भगवान शिव, मां सती की अनुरोध को ठुकरा नहीं सके। हालांकि, पिता के घर पर पहुंचने के बाद उन्हें अपमान सहना पड़ा। उस समय मां सती को आभास हुआ कि उन्होंने आकर गलती कर दी। उस समय उन्होंने यज्ञ वेदी में अपनी आहुति दे दी। कालांतर में मां सती शैलराज हिमालय के घर जन्म लेती हैं। अतः मां शैलपुत्री कहलाती हैं।