आज नवरात्र के पहला दिन, जानें मां शैलपुत्री की पूजा विधि, भोग, मंत्र

admin
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वासंतिक नवरात्रि का पहला दिन, मां शैलपुत्री: चैत्र नवरात्रि आज से शुरू हो रहे हैं और घट स्थापना के बाद मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना की जाएगी। शैल का अर्थ होता है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण माता पार्वती को शैलपुत्री भी कहा जाता है। पार्वती के रूप में इन्हें भगवान शंकर की पत्नी के रूप में भी जाना जाता है। वृषभ (बैल) इनका वाहन होने के कारण इन्हें वृषभारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि श्रद्धा पूर्वक विधि-विधान के साथ मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा उपासना की जाती है, उसी सभी मनोकामानएं पूरी होती हैं और कष्टों से मुक्ति मिलती है। इनकी आरधना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

प्रतिपदा तिथि में अमावस्या का कहीं भी स्पर्श नहीं होने के कारण विक्रम संवत् 2081 का प्रवेश एवं वासन्तिक नवरात्र घटस्थापन 9 अप्रैल सन् 2024 ई. को ही शास्त्र सम्मत रहेगा। घटस्थापन मंदिरों व शक्तिपीठों में मंगलवार तड़के 4:00 बजे 5:20 तक ब्रह्म मुहूर्त में विशेष शुभ रहेगा। देवी के विशेष रूप से बनाए गए मण्डपों और घरों में प्रातः 7:06 बजे 10:00 बजे तक वृष लग्न में भी नवरात्र घटस्थापन उत्तम रहेगा। इसके बाद अभिजीत मुहूर्त 11:50 से 12:55 तक रहेगा, इसमें भी घट स्थापना करना सबसे शुभ रहेगा।

वैदिक पंचांग के अनुसार, चैत्र नवरात्रि के पहले दिन सर्वार्थ सिद्धि और अमृत योग रहेगा। वैदिक ज्योतिष में इन योगों में पूजा बहुत ही शुभ फलदायी होती है। साथ ही 9 अप्रैल को सुबह 7:30 बजे तक पंचक रहने वाला है। 17 अप्रैल दिन बुधवार को नवरात्रि का समापन होगा।

मां शैलपुत्री पूजा विधि
चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत साफ वस्त्र धारण करें और फिर एक चौकी को रख लें और उसको गंगाजल से साफ करके मां दुर्गा की मूर्ति, तस्वीर या फोटो स्थापित करें। इसके बाद पूरे परिवार के साथ विधि-विधान के साथ कलश स्थापना की जाती है। घट स्थापना के बाद मां शैलपुत्री का ध्यान मंत्र का जप करें और व्रत का संकल्प लें। मां दुर्गा की पहली शक्ति माता शैलपुत्री की पूजा षोड्शोपचार विधि से की जाती है। इनकी पूजा में सभी नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आह्वान किया जाता है। इसके बाद माता को कुमकुम लगाएं और सफेद, पीले या लाल फूल माता को अर्पित करें। माता के सामने धूप, दीप जलाएं और पांच देसी घी के दीपक जलाएं। इसके बाद माता शैलपुत्री की आरती उतारें और फिर माता की कथा, दुर्गा चालिसा, दुर्गा स्तुति या दुर्गा सप्तशती आदि का पाठ करें। इसके बाद पूरे परिवार के साथ माता के जयकारे लगाएं और भोग लगाकर पूजा को संपन्न करें। शाम के समय में भी माता की आरती करें और मंत्र जप व ध्यान करें।

माता शैलपुत्री को पसंद हैं ये चीजें
माता की पूजा और भोग में सफेद रंग की चीजों का ज्यादा प्रयोग करना चाहिए। माता को सफेद फूल, सफेद वस्त्र, सफेद मिष्ठान अर्पित करें। माता शैलपुत्री की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है और घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती है। शैल का अर्थ होता है पत्‍थर और पत्‍थर को सदैव अडिग माना जाता है।

ऐसे करें घटस्थापना
घटस्थापना यानी पूजा स्थल में तांबे या मिट्टी का कलश स्थापन किया जाता है, जो लगातार नौ दिन तक ही स्थान पर रखा जाता है। घटस्थापन हेतु गंगा जल, नारियल, लाल कपड़ा, मौली, रौली, चंदन, पान, सुपारी, धूपबत्ती, घी का दीपक, ताजे फल, फूल माला, बेलपत्रों की माला, एक थाली में साफ चावल चाहिए। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुड़ीपड़वा) मंगलवार को रात 11 बजकर 50 मिनट से शुरू हो जाएगी, जो अगले दिन यानी 9 अप्रैल को रात 8 बजकर 30 मिनट पर खत्म होगी। ऐसे में उदया तिथि के आधार पर नवरात्र 9 अप्रैल से शुरू होगा।

प्रतिपदा तिथि में अमावस्या का कहीं भी स्पर्श नहीं होने के कारण विक्रम संवत् 2081 का प्रवेश एवं वासन्तिक नवरात्र घटस्थापन 9 अप्रैल सन् 2024 ई. को ही शास्त्र सम्मत रहेगा। घटस्थापन मंदिरों व शक्तिपीठों में मंगलवार तड़के 4:00 बजे 5:20 तक ब्रह्म मुहूर्त में विशेष शुभ रहेगा। देवी के विशेष रूप से बनाए गए मण्डपों और घरों में प्रातः 7:06 बजे 10:00 बजे तक वृष लग्न में भी नवरात्र घटस्थापन उत्तम रहेगा। इसके बाद अभिजीत मुहूर्त 11:50 से 12:55 तक रहेगा, इसमें भी घट स्थापना करना सबसे शुभ रहेगा।

वैदिक पंचांग के अनुसार, चैत्र नवरात्रि के पहले दिन सर्वार्थ सिद्धि और अमृत योग रहेगा। वैदिक ज्योतिष में इन योगों में पूजा बहुत ही शुभ फलदायी होती है। साथ ही 9 अप्रैल को सुबह 7:30 बजे तक पंचक रहने वाला है। 17 अप्रैल दिन बुधवार को नवरात्रि का समापन होगा।

मां शैलपुत्री पूजा विधि
चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत साफ वस्त्र धारण करें और फिर एक चौकी को रख लें और उसको गंगाजल से साफ करके मां दुर्गा की मूर्ति, तस्वीर या फोटो स्थापित करें। इसके बाद पूरे परिवार के साथ विधि-विधान के साथ कलश स्थापना की जाती है। घट स्थापना के बाद मां शैलपुत्री का ध्यान मंत्र का जप करें और व्रत का संकल्प लें। मां दुर्गा की पहली शक्ति माता शैलपुत्री की पूजा षोड्शोपचार विधि से की जाती है। इनकी पूजा में सभी नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आह्वान किया जाता है। इसके बाद माता को कुमकुम लगाएं और सफेद, पीले या लाल फूल माता को अर्पित करें। माता के सामने धूप, दीप जलाएं और पांच देसी घी के दीपक जलाएं। इसके बाद माता शैलपुत्री की आरती उतारें और फिर माता की कथा, दुर्गा चालिसा, दुर्गा स्तुति या दुर्गा सप्तशती आदि का पाठ करें। इसके बाद पूरे परिवार के साथ माता के जयकारे लगाएं और भोग लगाकर पूजा को संपन्न करें। शाम के समय में भी माता की आरती करें और मंत्र जप व ध्यान करें।

माता शैलपुत्री को पसंद हैं ये चीजें
माता की पूजा और भोग में सफेद रंग की चीजों का ज्यादा प्रयोग करना चाहिए। माता को सफेद फूल, सफेद वस्त्र, सफेद मिष्ठान अर्पित करें। माता शैलपुत्री की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है और घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती है। शैल का अर्थ होता है पत्‍थर और पत्‍थर को सदैव अडिग माना जाता है।

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