सावन में कैसे करें पार्थिव शिवलिंग की पूजा? शिव पुराण से जानें पूजन सामग्री और विधि

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शिव मूर्ति का पूजन करना ​तप से भी अधिक फल प्रदान करता है. पार्थिव लिंग सभी लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है. इनकी पूजा करने से अनेक मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं. अनेक देवता, दैत्य, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व, सर्प आदि शिवलिंग की उपासना करके अनेक सिद्धियां प्राप्त करने में सफल रहे. सतयुग में रत्न का, त्रेतायुग में सोने का, द्वापर में पारे का और कलयुग में पार्थिव शिवलिंग बहुत ही महत्वपूर्ण है. जिस प्रकार से गंगा सभी नदियों में श्रेष्ठ है, उसी प्रकार से पार्थिव लिंग सभी लिंगों में सर्वश्रेष्ठ है. जैसे सभी व्रतों में शिवरात्रि, सब दैवीय शक्तियों में देवी शक्ति श्रेष्ठ है, वैसे ही सब लिंगों में पार्थिव लिंग श्रेष्ठ है. आइए शिव पुराण से जानते हैं पार्थिव लिंग की पूजा विधि, पूजन सामग्री और महत्व के बारे में.

कैसे बनाएं पार्थिव शिवलिंग?
किसी नदी या तालाब के किनारे, जंगल में, शिवालय में या किसी अन्य पवित्र स्थान पर पार्थिव शिवलिंग का निर्माण करना चाहिए. उस पवित्र स्थान की मिट्टी से पार्थिव शिवलिंग का निर्माण करना चाहिए. इसके लिए आप श्वेत मिट्टी, लाल मिट्टी, पीली मिट्टी या काली मिट्टी का उपयोग कर सकते हैं. सबसे पहले मिट्टी एकत्र करके उसे गंगाजल से शुद्ध कर लें. फिर उससे पार्थिव शिवलिंग का निर्माण करें.

पार्थिव शिवलिंग की पूजा सामग्री
पवित्र मिट्टी, पंचामृत यानि दूध, दही, घी, शक्कर और शहद, वस्त्र, यज्ञोपवीत, चंदन, रोली, अक्षत्, फूल, बेलपत्र, दीप, नैवेद्य, फल, गाय का घी, कपूर आदि.

पार्थिव शिवलिंग पूजा की विधि
शिव पुराण के अनुसार, वैदिक कर्मों के प्रति श्रद्धा-भक्ति रखने वाले मनुष्यों के लिए पार्थिव शिवलिंग की पूजा पद्धति ही परम उपयोगी और श्रेष्ठ है. वह भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली है. सबसे पहले सूत्रों की विधि से स्नान करें. उसके बाद संध्या उपासना करें और ब्रह्म यज्ञ करें. फिर देवताओं, ऋषियों, मनुष्यओं और पितरों के लिए तर्पण करें. सभी कार्यों को करने के बाद भगवान शिव का स्मरण करके रुद्राक्ष और भस्म धारण करें. उसके बाद ही भक्तिपूर्वक पार्थिव शिवलिंग की पूजा करें. इससे सभी मनोकामनाओं की प्राप्ति होती है.

सबसे पहले ओम नम: शिवाय मंत्र का उच्चारण करें और सभी पूजन सामग्री को एकत्र करके उसे गंगाजल से पवित्र कर लें. भूरसि मंत्र से पूजा स्थान की शुद्धि करें. फिर जल संस्कार करें और स्फटिक ​शिला से घेरा बनाएं और क्षेत्र की शुद्धि करें. फिर उसके बाद पार्थिव शिवलिंग की स्थापना करें. भगवान शिव का आह्वान करें और उनको एक आसन पर स्थापित करें और उनके सामने एक आसन पर आप बैठ जाएं.

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