भाद्रपद मास की पूर्णिमा से पितर पक्ष का आरंभ माना जाता है। भाद्र पूर्णिमा इस बार 18 सितंबर को मनाई जाएगी और इस दिन व्रत रखा जाएगा। मान्यता है कि भाद्रमास कर पूर्णिमा पर भगवान नारायण के साथ पितरों का भी पूजन किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ ही पितरों का स्मरण करके उनके निमित्त दान करने से आपको पुण्य की प्राप्ति होती है और पितृगण आपसे प्रसन्न होकर आपको सुखी रहने का आशीर्वाद देते हैं। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने का भी खास महत्व होता है और आपको लाभ की प्राप्ति होती है। आइए आपको बताते हैं कि भाद्रपद मास की पूर्णिमा की तिथि कब से कब तक है और इसका व्रत कब रखा जाएगा।
भाद्रपद मास की पूर्णिमा कब है
भाद्रपद मास की पूर्णिमा 17 सितंबर मंगलवार को दिन में 11 बजकर 44 मिनट से आरंभ होगी और इसका समापन 18 सितंबर बुधवार को सुबह 8 बजकर 4 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर भाद्रपद पूर्णिमा 18 सितंबर को मान्य होगी। पंचांग के अनुसार, जो लोग सत्यनारायण कथा, लक्ष्मी पूजन और चंद्रमा की पूजा करते हैं वह 17 सितंबर को व्रत करें। वहीं पूर्णिमा का स्नान दान 18 सितंबर को उदयातिथि पर करना सर्वमान्य होगा। भाद्रपद मास की पूर्णिमा पर सत्य नारायण भगवान की कथा करवाने से आपको विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और आपके घर में धन संपत्ति के साथ ही सुख समृद्धि बढ़ती है।
भाद्रपद पूर्णिमा से होगा पितृ पक्ष का आरंभ
भाद्रपद मास की पूर्णिमा यानी कि 17 सितंबर से पितृ पक्ष का आरंभ माना जाएगा और यह 16 दिन तक चलता है। 2 अक्टूबर को इसका समापन होगा और 3 अक्टूबर को नवरात्रि का आरंभ होगा। पूर्णिमा को व्रत करके रात में महालक्ष्मी की पूजा करने से आपके आर्थिक संकट दूर होते हैं और आपके जीवन में संपन्नता बढ़ती है। उस दिन चंद्रोदय शाम को 6 बजकर 3 मिनट पर होगा। इस दिन जो लोग व्रत रखें, वे चंद्रमा की पूजा शाम को 6 बजकर 3 बजे के बाद करें।
भाद्रपद पूर्णिमा पर क्या करें भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करें। इस दिन पीपल के चारों ओर परिक्रमा करने से आपके घर में सुख शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पितरों के नाम से आपको दान पुण्य भी करना चाहिए। इससे आपके घर में खुशहाली आती है। इस दिन आपको उन लोगों का श्राद्ध करना चाहिए जो लोग पूर्णिमा पर मृत्यु को प्राप्त होते हैं।