19 अगस्त को देशभर में मनाया जाएगा रक्षाबंधन, जानें राखी बांधने का शुभ समय

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सावन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हर साल रक्षाबंधन मनाया जाता है। इस पर्व में अपराह्न व्यापिनी पूर्णिमा तिथि का होना जरूरी है, और भद्रा वर्जित है। पुराणों में भद्रा को सूर्य की पुत्री और शनि की बहन बताया गया है, और किसी भी शुभ कार्य की इसकी उपस्थिति नहीं होनी चाहिए। रक्षा बंधन के दिन सुबह स्नान करके देवता, पितर, और ऋषियों का स्मरण किया जाता है। इसके बाद रक्षा सूत्र (राखी) को गाय के गोबर से लिपे शुद्ध स्थान पर रखकर विधिपूर्वक पूजा की जाती है। फिर रक्षा सूत्र को दाहिने हाथ में बंधवाया जाता है। रक्षा सूत्र बांधते समय नीचे दिए मंत्र का उच्चारण किया जाता है:

येन बद्धो बली राजा दानवेद्रो। महाबला।।
तेन त्वामनु बघ्नामि रक्षो मा चल मा चलः।।

रक्षाबंधन का मुहूर्त
इस साल, विक्रम संवत 2081 में सावन शुक्ल पूर्णिमा (19 अगस्त 2024) को सूर्योदय से पहले 03:05 बजे से रात्रि 11:55 बजे तक पूर्णिमा रहेगी। मकर राशि में चंद्रमा होने के कारण भद्रा पाताल लोक में निवास करेगी, इसलिए भद्रा दोष भी नहीं लगेगा। सोमवार, 19 अगस्त 2024 को सुबह 9 बजे श्रवण पूजन के बाद शाम 5 बजे तक रक्षाबंधन कल्याणकारी सिद्ध होगा।

रक्षाबंधन की कथा
एक बार बारह साल तक देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें देवताओं की हार हुई और असुरों ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। हार से निराश इंद्र अपने गुरु बृहस्पति के पास गए और कहने लगे कि मेरा युद्ध करना अनिवार्य है, जबकि अब तक के युद्ध में हमें हार ही हाथ लगी है। इंद्र की पत्नी इंद्राणी भी यह सब सुन रही थीं। उन्होंने कहा कि कल श्रावण शुक्ल पूर्णिमा है, मैं विधानपूर्वक रक्षासूत्र तैयार करूंगी, आप ब्राह्मणों से बंधवा लीजिएगा, इससे आप जरूर विजयी होंगे। दूसरे दिन इंद्र ने रक्षा-विधान के साथ रक्षाबंधन करवाया। इसके बाद ऐरावत हाथी पर चढ़कर जब इंद्र रणक्षेत्र में पहुंचे तो असुर इतने भयभीत हुए कि वे भाग खड़े हुए। इस प्रकार, रक्षा विधान के प्रभाव से इंद्र की विजय हुई और तभी से यह पर्व मनाया जाने लगा।

श्रवण पूजन
सावन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ही पितृभक्त बालक श्रवण कुमार रात्रि के समय अपने अंधे माता-पिता के लिए जल लेने गया। वहीं कहीं शिकार की ताक में राजा दशरथ जी छिपे हुए थे। उन्होंने जल के घड़े की आवाज को पशु का शब्द समझकर शब्द भेदी बाण छोड़ दिया, जिससे श्रवण की मृत्यु हो गई। श्रवण की मृत्यु का समाचार सुनकर उनके नेत्रहीन माता-पिता विलाप करने लगे। तब दशरथ जी ने अज्ञानता में हुए अपराध के लिए माफी मांगी और श्रावणी के दिन श्रवण पूजा का प्रचार किया। तब से श्रवण पूजा की जाने लगी और सबसे पहले रक्षा सूत्र श्रवण को अर्पण करते हैं।

श्रावणी उपाकर्म
सावन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ही श्रावणी उपाकर्म का समय माना गया है। यह दिन विशेषकर ब्राह्मणों का पर्व है, जिसमें वेद पारायण का शुभारंभ किया जाता है। इस दिन यज्ञोपवीत (जनेऊ) का पूजन किया जाता है और पुराने यज्ञोपवीत को उतारकर नया धारण किया जाता है। यह प्रथा प्राचीन भारत की समृद्ध परंपरा का हिस्सा है, जिसमें गुरु अपने शिष्यों के साथ इस अनुष्ठान को करते थे।

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