सावन का पवित्र प्रारम्भ होने वाला है, पुण्य कमाने और मनोकामना पूर्ति के लिए श्रद्धालुओं द्वारा शिवार्चन, जल अभिषेक, मंत्र जप, व्रत आदि सम्पूर्ण सावन माह में किया जाएगा। शिव पुराण के अनुसार मां पार्वती ने एक बार भगवान शिव से पूछा कि, ‘हे देवाधिदेव महादेव! सावन में आप भक्तों की मनोकामनाएं कब पूर्ण करते हो ?’ तब शिवजी ने कहा, ‘कोई भी पूजा गणपति की सर्वप्रथम वन्दना के बिना सम्पन्न नहीं होती, भक्त मेरे साथ आपकी और कार्तिकेय की पूजा तो करते हैं, परन्तु मेरे प्रिय वाहन नन्दी को पूजा का हिस्सा नहीं देते, यह बात मुझे नापसंद है।
सावन माह में मेरी कृपा प्राप्ति के लिए नन्दी पूजन अवश्य करना चाहिए।’ शिव पुराण में शिव पार्वती के इस संवाद के अनुसार पूर्ण फल हेतु श्रद्धालु शिव प्रिय नन्दी का पूजन शिव पूजा के उपरान्त अवश्य करते हैं।
नंदी को न भूलें शिव पूजा के समय –
लोकभाषा के समान अर्थों मे नन्दी को बैल कहते हैं। प्रसिद्ध संस्कृत पौराणिक ग्रन्थों में वृष का अर्थ बैल और धर्म दोनों माना गया है इसलिए वृष धर्म का प्रतीक है और शिव धर्मरूपी वाहन पर सवार होकर विश्व का नेतृत्व करते हैं। इतना ही नहीं सृष्टि की रचना में अन्न, दूध, घी तथा वर्षा, पोषण तत्व हैं, वृषभ इन सब का प्रतीक कहा गया है इसलिए सावन में नन्दी की पूजा धर्म की पूजा मानी गई है। धर्म की स्थापना ही भारतीय पर्वों का मुख्य उद्देश्य रहा है।
सावन महीने में बैलों को हरा चारा खिलाना और मंदिर में नन्दी की पूजा विशेष फलदायक रहती है। विष्णु धर्मोत्तर पुराण में नन्दी को तीन आंखों वाला त्रिशूलधारी बताया गया है, मत्स्य पुराण में नन्दी के संघर्षों का वर्णन प्राप्त होता है, नन्दी को साथ रखने के कारण शिव को नन्दीश्वर भी कहा जाता है। महाभारत में नन्दी को वृषभध्वज कहा गया है, पुराणों में नन्दी को अतुलनीय शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया है, नन्दी शिव के गणों में प्रमुख हैं इसलिए जहां भी शिव होते हैं, वहां नन्दी अवश्य होते हैं। इसलिए शिव उपासना में पूजन उपरांत नन्दी को प्रणाम कर पुष्प आदि अर्पित करने का विधान है।