…जानें क्या है गणेश उत्सव का इतिहास और महत्व!

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तस्वीर : साभार

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गणेश उत्सव भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. जहाँ गणेश उत्सव के समय भारत में आकर्षक पंडालों में प्रथम पूज्य गणपति जी को विराजित किया जाता है तो वहीं नेपाल, इंडोनेशिया, थाईलैंड, जापान, तिब्बत और श्रीलंका समेत कई अन्य देशों में गौरी पुत्र गणेश को कई रूपों में पूजा जाता है. भारत में गणेश उत्सव को लेकर पूरे देश में उत्साह का माहौल होता है लेकिन खासतौर से महाराष्ट्र में इन दिनों में गणपति की प्रतिमा विराजित करने और पूजन के लिए उत्साह जोरों पर होता है. महाराष्ट्र में यह त्योहार बहुत ही धूमधाम और भव्यता के साथ मनाया जाता है. सार्वजनिक स्थानों पर बड़े-बड़े पंडाल बनाए जाते हैं और उनमें भगवान गणेश की मूर्तियाँ स्थापित की जाती है. पंडालों में फूलों, रोशनी के साथ ही आकर्षक सजावट की जाती है. यह उत्सव हिंदू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद (भादो) माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होता है और अनंत चतुर्दशी तक चलता है. इस वर्ष गणेश उत्सव की शुरुआत 19 सितंबर से हुई है.

गणेश चतुर्थी का महत्व

भगवान श्री गणेश देवताओं में अग्रगण्य हैं. श्री गणेश को देवताओं में सबसे पहले पूजा जाता है. उन्हें बल और बुद्धि का निधि माना जाता है. गणेश चतुर्थी विघ्नहर्ता भगवान गणेश के जन्म का उत्सव है. भगवान गणेश को नयी शुरुआत और समृद्धि के देवता के रूप में भी पूजा जाता है. भक्त किसी कार्य में सफलता और अपने जीवन से बाधाओं को दूर करने के लिए गणेश जी से प्रार्थना करते हैं. त्योहार के दसवें दिन, भगवान गणेश की मूर्तियों को नदियों, झीलों और समुद्र जैसे जल निकायों में विसर्जित किया जाता है. इस अनुष्ठान को विसर्जन के नाम से जाना जाता है. यह भगवान गणेश की कैलाश पर्वत पर अपने निवास स्थान पर वापसी का प्रतीक है.

गणेश चतुर्थी का इतिहास

गणेश चतुर्थी का इतिहास 17वीं शताब्दी से मिलता है. ऐसा माना जाता है कि इस त्यौहार की शुरुआत मराठा छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी माता जीजाबाई से साथ की थी. कहा जाता है कि सनातन संस्कृति को बचाने और अपने लोगों को एकजुट करने और हिंदू संगठन को बढ़ावा देने के लिए गणपति महोत्सव की शुरुआत की थी. उन्होंने ग्रामदेवता कसबा गणपति की स्थापना की थी. शिवाजी महाराज के बाद पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया.

तिलक ने दिया नया स्वरूप

लम्बे समय तक गणेशोत्सव को लोग घरों में ही पूजा कर मानते थे. ब्रिटिश शासन काल में लोग किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम या उत्सव को साथ मिलकर नहीं मना पाते थे. राष्ट्रवादी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी ने वर्ष 1893 में गणेशोत्सव को आंदोलन का स्वरूप दिया. उन्होंने गणेशोत्सव के माध्यम से आजादी की लड़ाई से लोगों को जोड़ने, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित करने का काम किया, जिससे गणेशोत्सव राष्ट्रीय एकता का प्रतीक कर उभरा. इस अनोखे आंदोलन न सिर्फ लोगों को आपस में जोड़ने का काम किया बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में भी अहम भूमिका निभाई.

उत्सव एक, नाम अनेक

आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में गणेश उत्सव को विनायक चविधि के नाम से जाना जाता है. कर्नाटक में इस त्योहार को गणेश हब्बा के नाम से जाना जाता है। इसे हिंदू और जैन दोनों ही बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं. भक्त अपने घरों और मंदिरों में भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करते हैं और फूलों, फलों और मिठाइयों से उनकी पूजा करते हैं. तमिलनाडू में इस त्योहार को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. इसे कर्नाटक में गणेश हब्बा की तरह ही मनाया जाता है. हालाँकि, इन सभी राज्यों में गणेश पूजन के रीति-रिवाजों में कुछ मामूली अंतर देखने को मिलता है.

इन देशों में भी पूजे जाते हैं गणेश

दुनिया के कई देशों में गणेश जी पर आस्था देखने को मिलती है. इनमें नेपाल, तिब्बत, इंडोनेशिया, थाईलैंड, श्रीलंका, जापान तो शामिल हैं ही साथ ही सिंगापुर, मलेशिया, साउथ अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा, गुयाना, सूरीनाम, फिजी, मॉरीशस, अमेरिका, त्रिनिदाद, टौबैगो, कैरेबियन के कई हिस्से और यूरोप में कई जगहों पर गणेश विराजित कर उन्हें पूजा जाता है.

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